Saturday, December 10, 2011

गए की फरयाद,

गए की फरयाद,

कल पूजा भी करवाई थी,
शक्कर का शंकर लाई थी,
ढोलक भी खूब बजाई थी,
दारू भी तो चढवाई थी,





यह सब करते जो देर हुई,
सुबह आठ बजे फिर आँख खुली,
वो मैंने जाकर के देखा,
शंकर वो मेरा तो ग़ायब था,
थोडा सा फिर एहसास हुआ,
कल की पूजा मैं दम तो था,
कल की पूजा मैं दम तो था,

मैं घबराई, फिर चिल्लाई,
और दोढ़ के बैठक मैं आई,
बंटती के पापा इधर तो आ,
यह देख अजूबा अयन हुआ,

वो था गणेश ने दोध पिया,
पर यह तो जैसे चल भगा,

कल की पूजा मैं दम तो था,



बंटी ने जो यह शोर सुना,



था कहाँ वहीँ से बोल बड़ा,



वो शंकर जो टेबल पर था,



वो मेरे शिकं की आग बना,



मैं ने ही उसको खाया था ,



मैं ने ही उसको खाया था,



मम्मी,



अबे ओ छाले ,



तू खाल मैं रह ,



तू कैसा हेरे ओ छोरा,



शंकर जी को ही झटक गया,



वो हज़म तुझे कैसे था हुआ,



आखिर वो था एक देवता,



गर हुई आया के चुगलखोरी,



कर्फिव की आशा है पूरी,



वो मियां जो गाय खता है ,


बिन बैल का वारंट आता है,


नेता जो बीच अं आता है,


तो कर्फिव लग जाता हे,