चुनाव मुहीम
रुत दान ऐ मत की आई ---2
नता ने की भलाई -
चले मे गुजार----
ख़ुद गरज वार ---
दिल्खाश बहार
पब्लिक के डर पे झांकी ,
किस्मत फिरी जगह की --
आफत गई वहां की ---
चुनावी बेलबूटे --2
दीवार ओ डर पे टूटे , --1
वादें हैं सब्ज़ ,
शादाब लफ्ज़ , \
जनता की नब्ज़ ,
माय सोज़ ओ साज़ फूटे ,
चनावी बेलबूटे , --1
देवर ओ डर पे फूटे , --1
एक आदमी ने पहने
ख़्वाबों के सब्ज़ गहने
नुक्कड़ का रक्स
नारों की गरज
भोंपू का दर्द
उसको परे हैं सहने
एक आदमी ने पहने
खुवाबों के सब्ज़ गहने
हाय इश्क भी जूनून बी
मस्ती भी , --
जोश ऐ खून भी
पब्लिक का दर्द ,
नेता की गरज ,
जलसों की अर्ज़ ,
हे कियों भी और यौन भी , -१
मस्ती भी , जोश ऐ खून भी --१
नगरी का हर दरिंदा , --२
तप्पोरिया बाशिंदा, --१
कोई गर्म खेज़ ,
कोई नाघ्मा रेज़ ,
कोई दिल फरेब ,
फिर होगया ही जिंदा, --१
नगरी का हर दरिंदा ,
तप्पोरिया लफंगा , -
रुत दान ऐ मत की आई , --२
नेता न दी दुहाई ---१
Saturday, October 24, 2009
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